राज्य के कार्य क्षेत्र के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों में काफी मतभेद पाए जाते हैं। कुछ विद्वान राज्य को सीमित कार्य दिए जाने के पक्ष में हैं। उनका विचार है कि राज्य के हाथों में अधिक कार्य व्यक्ति की स्वतन्त्रता को नष्ट कर देंगे।
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परन्तु इसके विपरीत कुछ विद्वान् ऐसे भी हैं जो राज्य को सार्वजनिक कल्याण की संस्था मानते हैं और इसे अधिकतम कार्य दिए जाने के पक्ष में हैं, उनके नाम:- जे.एस. मिल (J.S. Mill), लास्की (Laski), ग्रीन (Green), कोल (Cole), लिंडसे (Lindsay) आदि।
वर्तमान कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त का वर्णन हमें अपने धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) ने भी राज्य का उद्देश्य मानव जाति की सेवा बताया है। परन्तु कल्याणकारी राज्य का स्पष्ट रूप 19वीं शताब्दी में उस समय सामने आया जब व्यक्तिवादी विचारधारा के भयानक परिणाम सामने आए।
चलिए देखते है कि कल्याणकारी राज्य की धारणा का जन्म कैसे हुआ।
कल्याणकारी राज्य की धारणा का जन्म
कल्याणकारी राज्य का विचार बहुत पुराना है, परन्तु वास्तविक रूप में यह विचार 1 9वीं शताब्दी में व्यक्तिवादी विचारधारा के बुरे परिणामों के विरुद्ध एक प्रतिक्रम सामने आया। व्यक्तिवादियों द्वारा व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए और उसे राज्य के नियन्त्रण से मुक्त करने के लिए ‘मुक्त रहने दो‘ (Laissez Faire) और ‘व्यक्ति को खुला छोड़ दो‘ (Leave the Man Free) के विचार का प्रचार किया और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य द्वारा कम से कम कार्य किए जाने का समर्थन किया गया था।
उनका विचार था कि आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त होगी और आर्थिक विकास तेज होगा।
व्यक्तिवाद के बुरे परिणाम (Bad result of Individualism)
व्यक्तिवादी विचारधारा के प्रभावाधीन 1 9वीं शताब्दी में व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्र में खुला छोड़ दिया गया जिसका पूंजीपतियों द्वारा भरपूर लाभ उठाया गया । उन्होंने मजदूरों से अधिकतम काम लिया और बदले में उन्हें कम से कम मजदूरियां दी गईं। इसके परिणामस्वरूप मजदूरों का पूंजीपतियों द्वारा जी भर कर शोषण किया गया। अमीर और अमीर हो गए और गरीब पिस गया जिस कारण यूरोप में हाहाकार मच गई।
मार्क्सवाद का जन्म (Emergence of Marxism)
मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों से उन्हें छुटकारा दिलाने के लिए कार्ल मार्क्स द्वारा मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार किया गया। कार्ल मार्क्स ने प्रचार किया कि धन का उत्पादन मज़दूर करते हैं और इसके लिए धन का प्रयोग भी मजदूरों की भलाई के लिए किया जाना चाहिए|
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उत्पादन लाभ का दृष्टि को मुख्य रख कर नहीं अपितु सामाजिक ज़रूरतों को मुख्य रख कर किया जाना चाहिए। राज्य द्वारा आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जाना चाहिए। मज़दूर की मजदुरियां और काम करने के घण्टे निश्चित किए जाने चाहिए और उन्हें हर प्रकार की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। मार्क्सवादियों ने व्यक्ति के हितों की रक्षा से सामाजिक हितों की रक्षा पर अधिक बल . दिया।
कल्याणकारी राज्य का सिद्धान्त व्यक्तिवाद और मार्क्सवाद के बीच का रास्ता है
कल्याणकारी राज्य का विचार व्यक्ति को अधिकतम स्वतन्त्रता दिए जाने और उसके कल्याण के लिए राज्य द्वारा अधिकतम कार्य किए जाने के विचार का समर्थक है। व्यक्ति का कल्याण कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य है। इस तरह यह सिद्धान्त व्यक्तिवाद और मार्क्सवाद के बीच का रास्ता है और 20वी शताब्दी का अत्यन्त लोकप्रिय सिद्धान्त है।
कल्याणकारी राज्य के अर्थ और परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Welfare State)
कल्याणकारी राज्य के अर्थों को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा अग्रलिखित परिभाषाएं दी गई हैं:-
- कैंट (Kent) के अनुसार, “कल्याणकारी राज्य वह है जो अपने नागरिकों को अधिकतम सामाजिक सेवाएं प्रदान करता है।”
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2. जी.डी.एच.कोल (G.D.H. Cole) के अनुसार,”कल्याणकारी राज्य समाज है जिसमें एक निश्चित न्यूनतम जीवन स्तर और अवसर की प्राप्ति प्रत्येक नागरिक का अधिकार बन जाता है।”
3. आर्थर शैलिंसगर (Arthur Schlesinger) के अनुसार, “कल्याणकारी राज्य एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सरकार अपने सभी नागरिकों के लिए एक विशेष स्तर तक रोज़गार, आय, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं, सामाजिक सुरक्षा और रहने के लिए मकान प्रदान किए जाने के लिए सहमत होती है।”
ऊपर लिखित परिभाषाओं को पढ़ने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि कल्याणकारी राज्य व्यक्ति के लिए अधिकतम कार्य करता है और उसके जीवन को अधिकतम आनन्दमयी बनाने के लिए यत्नशील होता है।
जहां यह राज्य व्यक्ति को अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करता है वहां यह व्यक्ति के कल्याण का दायित्व भी अपने ऊपर लेता है। इसमें व्यक्ति की स्वतन्त्रता और उसकी शान आदि का सम्मान किया जाता है।
इंग्लैंड, अमरीका, फ्रांस, इटली, जर्मनी, डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन आदि राज्य उदारवादी कल्याणकारी राज्यों के उदाहरण हैं।
कल्याणकारी राज्य के उद्देश्य (Objectives of the Welfare State)
कल्याणकारी राज्य के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:-
1.आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना-
कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की आर्थिक सुरक्षा है। कल्याणकारी राज्य में व्यक्ति की तीन मौलिक जरूरतें (रोटी, कपड़ा और मकान) अवश्य पूरी होनी चाहिएं। नहीं तो उसे दी गई राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई लाभ नहीं होगा।
कल्याणकारी राज्य में आर्थिक जीवन के एक विशेष स्तर का प्रबन्ध करना अनिवार्य है। जीवन का आनन्द उठाने के लिए व्यक्ति को आवश्यक साधन राज्य से प्राप्त होने चाहिएं। इसके अतिरिक्त बेरोजगारी, बुढ़ापा और बीमारी आदि की दुःखदायी स्थितियों से उनकी रक्षा के लिए प्रबन्ध होना चाहिए। सामाजिक क्षेत्रों में किसी व्यक्ति के रंग-नस्ल या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
2. राजनीतिक सुरक्षा (Political Security)-
राजनीतिक सुरक्षा का अर्थ यह है कि व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के राज्य के कार्यों में भाग ले सके। नागरिक को देश की समस्याओं के बारे में अपने विचार प्रकट करने की पूरी स्वतन्त्रता होनी चाहिए। कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान होने आवश्यक हैं।
व्यक्ति के पास जो अधिकार हैं उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध स्वतन्त्र न्यायपालिका द्वारा होना आवश्यक है। सरकारी क्षेत्र में उन्नति करने के लिए सभी को समान अवसर प्राप्त होने चाहिएं। आर्थिक सुरक्षा का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए राजनीतिक सुरक्षा का होना आवश्यक है।
3. सामाजिक समानता (Social Equality)-
कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य है कि राज्य सामाजिक समानता प्रदान करे। सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि राज्य में किसी के साथ भी जाति, धर्म, नस्ल, रंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए|
राज्य के कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप में लागू होने चाहिएं और जो व्यक्ति सामाजिक समानता को खतरा पैदा करे उसके विरुद्ध कानुनी कार्यवाही की जानी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति जो समाज में जन्म लेता है, को सुखी जीवन व्यतीत करने का अधिकार है।
किसी एक व्यक्ति का सुख दूसरे व्यक्ति के सुख के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता। इस तरह सभी को सामाजिक समानता प्राप्त हो सकती है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग (International Cooperation)-
एक कल्याणकारी राज्य वही हो सकता है जो सारी दुनिया के कल्याण की बात करता है क्योंकि कल्याणकारी राज्य की नींव दूसरे राज्य का विनाश करके नहीं रखी जा सकती। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कल्याणकारी राज्य दूसरे देशों के साथ मुकाबला नहीं करता, अपितु परस्पर सहयोग का वातावरण पैदा करता है ।
कल्याणकारी राज्य सदैव अपनी नीति अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को सामने रख कर बनाएगा।)
5. जन-कल्याण (Public Welfare)-
कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य जन-कल्याण है। कल्याणकारी राज्य व्यक्तियों को वे सभी अवसर प्रदान करता है जिससे वह अपना सर्वांगीण विकास कर सकें। व्यक्ति के शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक विकास का दायित्व राज्य पर है।
सरकार जन-कल्याण के लिए अस्पताल खोलती है, स्वास्थ्य केन्द्र बनाती है, व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए शिक्षण संस्थाएं खोलती है, आर्थिक क्षेत्र में राज्य श्रमिकों के हित की रक्षा के लिए उचित कानन बनाता है।
इसके अतिरिक्त राज्य लोगों की सेवा के लिए डाक-घर, टालकान, बस सेवाओं रेलवे आदि का प्रबन्ध करता है।
6. सांस्कृतिक विकास (Cultural Development)-
व्यक्ति के जीवन में सांस्कृतिक विकास की इतनी महानता है कि इसके बिना मनुष्य का जीवन रूखा-रूखा प्रतीत होता है। मनुष्य की बौद्धिक और सांस्कृतिक सन्तुष्टि के लिए कल्याणकारी राज्य कई मेलों, प्रदर्शनियों, समारोहों, खेल प्रतियोगिताओं, साहित्यिक गोष्ठियों का प्रबन्ध करता है।
जो साहित्य लोगों पर बुरा प्रभाव डालता है, राज्य उस पर प्रतिबन्ध लगाता है और अच्छा साहित्य पैदा करने के लिए लेखकों को उत्साह देता है। अतः, निष्कर्ष यह है कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए सांस्कृतिक विकास आवश्यक है।
राज्य के कल्याणकारी कार्य (Welfare Functions of the State)
कल्याणकारी राज्य के कार्यों की कोई निश्चित सूची तैयार करना सम्भव नहीं है, परन्तु फिर भी विलोबी (Prof. Willoughby) और प्रो. गैटल (Prof. Gettell) द्वारा राज्य के कार्यों को दो भागों में बांटा गया है जैसे-
1. अनिवार्य कार्य (Compulsory Functions):- यह वह कार्य हैं जिनका करना राज्य के लिए अत्यावश्यक है जैसे कि कानून व्यवस्था स्थापित करना, बाहरी आक्रमणों से रक्षा, दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित करना और न्यायिक प्रबन्ध।
2. ऐच्छिक कार्य (Optional Functions):- ऊपरलिखित अनिवार्य कार्यों के अतिरिक्त अन्य सभी कल्याणकारी कार्यों को राज्य के ऐच्छिक कार्य माना जाता है।
आधुनिक कल्याणकारी राज्य के कार्यों को हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत बांट सकते हैं:-
1. जीवन और सम्पत्ति की रक्षा-
राज्य का सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण कार्य व्यक्ति के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करना है। अरस्तु का विचार है कि राज्य जीवन की रक्षा के लिए अस्तित्व में आया है। यदि व्यक्ति को अपने जीवन की रक्षा की ही चिन्ता लगी रहेगी तो वह अपने जीवन में विकास नहीं कर सकता।
अतः, व्यक्ति के विकास के लिए जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करना राज्य का पहला महत्त्वपूर्ण कार्य है।
2. बाहरी आक्रमण से रक्षा-
राज्य को अपना अस्तित्व बनाए रखन के लिए बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty) की रक्षा करनी पड़ती है और जो राज्य ऐसा नहीं करेगा वह अपना अस्तित्व खो बैठेगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राज्य को एक शक्तिशाली और सशस्त्र सेना का प्रबन्ध करना पड़ता है।
जो राज्य ऐसा नहीं करेगा वह कभी भी अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खो बैठेगा और उसमें रहने वाले नागरिक स्वयं को सुरक्षित अनुभव नहीं करेंगे।
3. कानून व्यवस्था बनाए रखना-
राज्य के अन्दर कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य के मुख्य कार्यों में से एक हैं। अपराधों को रोकना, अपराधियों को दण्ड देना और जान-माल की रक्षा करने के लिए राज्य उचित प्रबन्ध करता है।
अपराधियों को पकड़ने और उन्हें दंड देने के लिए राज्य द्वारा पुलिस और अदालतों की व्यवस्था की जाती है यदि राज्य ऐसा नहीं करेगा तो राज्य में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ (Might is Right) वाली स्थिति बन जाएगी और अराजकता का राज्य स्थापित हो जाएगा और कमजोर, गरीब और पिछड़े हुए लोग राज्य में स्वयं को असुरक्षित अनुभव करेंगे।
4. न्याय प्रबन्ध-
आम जनता को इन्साफ़ देना और उचित न्यायिक ढांचा स्थापित करना राज्य का काम है। लोग उस राज्य को अच्छा समझते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भले ही वह अमीर है या गरीब है, को उचित न्याय मिलता हो।
आधुनिक राज्यों में स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की जाती है। यदि न्यायपालिका नहीं होगी तो लोग अपने झगड़ों का निपटारा स्वयं करेंगे और इससे कमजोर व्यक्तियों को इन्साफ़ प्राप्त नहीं होगा।
5. शिक्षा का प्रसार-
प्राचीन काल में शिक्षा के प्रसार का कार्य राज्य द्वारा नहीं किया जाता था। उस समय यह कार्य धार्मिक संस्थाओं, साधु-महात्मा, आश्रमों आदि द्वारा किए जाते थे। परन्तु आज के युग में शिक्षा के प्रसार का कार्य राज्य का उत्तरदायित्व बन चुका है क्योंकि शिक्षित नागरिक सरकार की सफ़लता और राज्य प्रबन्ध को अच्छा बनाने के लिए उचित योगदान दे सकता है।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राज्य आज स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटियां, तकनीकी कालेज आदि खोलता है और योग्य अध्यापकों का प्रबन्ध करता है आज राज्य शिक्षा प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों को अनेक प्रकार की सुविधाएं भी प्रदान करता है और गरीब तथा जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियों और शिक्षा के प्रबन्ध करता है।
6. सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा-
आज का राज्य सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का भी प्रबन्ध करता है। बूढ़े व्यक्तियों को पैन्शनों, बेकारों और अपंगों को भत्ते, सेवा निवृत्त होने पर पैंशनों आदि की सुविधाएं दी जाती हैं। कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को बुढ़ापे, बीमारी और बेकारी आदि के संकट-काल के समय सरकार द्वारा सहायता दी जाती है।
7. गरीबी दूर करना-
कोई भी राज्य उस समय तक प्रगति नहीं करता जब तक उसके नागरिक गरीब हैं और अपनी मौलिक जरूरतों की पूर्ति के असमर्थ हैं। गरीबी एक अभिशाप है। इसलिए राज्य का कर्त्तव्य है कि वह गरीबी दूर करे और नागरिक की मौलिक ज़रूरतें अर्थात् रोटी, कपड़ा और मकान आदि पूरी करे।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कल्याणकारी राज्य अनेक योजनाएँ बनाता है। लोगों के लिए रोजगार के साधन पैदा करता है, गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को मुफ्त और सस्ती दरों पर अनाज आदि बांटने की व्यवस्थाएं करता है।
8. स्वास्थ्य सुधार-
अरोग्यता प्रसन्न जीवन की कुंजी है और सुखी जीवन के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना आवश्यक है। इसलिए आज का राज्य इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अस्पताल खोलता है, डाक्टरों का प्रबन्ध करता है और ऐसे प्रबन्ध जोकि उचित हैं, करता है।
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बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके लगाए जाते हैं और पीने के लिए स्वच्छ जल का प्रबन्ध किया जाता है। गाँवों और शहरों में सफ़ाई का विशेष ध्यान रखा जाता है।
9. नैतिक और सामाजिक सुधार-
राज्य का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का विकास करना है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जो भी बाधाएं राज्य अनुभव करता है, उन्हें दूर करने का राज्य द्वारा प्रयास किया जाता है। समाज में बहुत सारी नैतिक और सामाजिक बीमारियां हैं जो व्यक्ति के विकास के रास्ते में बाधा बनती हैं।
इन सामाजिक बीमारियां को दूर करके ही व्यक्ति के जीवन को समृद्ध बनाया जा सकता है| छुआ-छूत , बाल-विवाह, सतिप्रथा, दहज दन की प्रथा, बलि देना आदि कुरीतियां हैं और कल्याणकारी राज्य इन्हें समाप्त करने का प्रयास करता है।
10. मनोरजन की सुविधाएं देना-
लोगों के जीवन को आनन्दमयी और रहने के योग्य बनाने के लिए आज का राज्य मनोरंजन के साधनों का विकास करता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सिनेमा-घर, खेल के मैदान, बाग-उद्यान, कला केन्द्र, टैलीविजन, रेडियो आदि का प्रबन्ध किया जाता है।
11. कृषि का विकास-
यद्यपि निजि क्षेत्र में होने के कारण खेती लोगों द्वारा की जाती है परन्तु फिर भी राज्य कृषि के विकास की तरफ़ पूरा ध्यान देता है। आजकल सारे विश्व को खाद्य पदार्थों की कमी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
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इसलिए कृषि के विकास की तरफ़ ध्यान देने की ज़रूरत है। कृषि के विकास के लिए अच्छे बीजों का प्रबन्ध किया जाता है, किसानों को खाद दी जाती है, कृषि के अच्छे यन्त्रों का विकास किया जाता है।
ट्यूबवैल और अन्य मशीनें आदि चलाने के लिए बिजली का प्रबन्ध करना पड़ता है। वैज्ञानिक विधियों से लोगों को परिचित करवाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय खोलना, विदेशों में कृषि के ढंग देखने के लिए किसान पार्टियां भेजना, आदर्श फारम आदि बनाना, सस्ती दरों पर कृषि विकास के लिए ऋण देना आदि कृषि के विकास के लिए आवश्यक कार्य हैं।
12. व्यापार और दस्तकारियों के लिए नियम बनाना-
आज का कल्याणकारी राज्य व्यापार और दस्तकारियों सम्बन्धी नियम बनाता है। काम करने के लिए समय निश्चित किया जाता है, मजदूरों की मजदूरियां निश्चित की जाती हैं, कच्चे माल का प्रबन्ध और आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित किए जाते हैं। राज्य उद्योग-धंधों के उत्साह के लिए बैंकों द्वारा सुविधाएं देता है।
13. कर लगाने और इकट्ठे करना-
राज्य को कई प्रकार के जनल्याण वाले और अन्य कार्य करने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। राज्य यह धन करों के रूप में इकट्ठा करता है। इस उद्देश्य के लिए कई प्रकार के कर लगाता है और उन्हें इकट्ठा करने का प्रबन्ध करता है।
इसके अतिरिक्त मुद्रा के अनावश्यक प्रसार को रोकने के लिए राज्य द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाते हैं, बैंकिंग प्रणाली को नियमित करना, ब्याज की दरें निश्चित करना, जरूरत के अनुसार नोट छापने आदि।
14. मज़दूरों के हितों की रक्षा-
मजदूरों के हितों की रक्षा करना कल्याणकारी राज्य का कार्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य मजदूरों द्वारा काम करने के घण्टे और मजदूरियां आदि निश्चित करता है। उन्हें आराम, छुट्टियां, बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएं आदि प्रदान किए जाने की व्यवस्थाएं करता है।
इसके अतिरिक्त राज्य मजदूरों के साथ सम्बन्धित विवादों के शीघ्र निपटारे के लिए मजदूर न्यायालय (Labour Courts) भी स्थापित करता है जिनमें केवल मजदूरों के साथ सम्बन्धित विवाद ही निपटाए जाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)-
कल्याणकारी राज्य के कार्यों की ऊपरलिखित सूची भी स्वयं में पूर्ण नहीं है क्योंकि कल्याणकारी राज्य व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक (From Cradle to Grave) व्यक्ति के जीवन के साथ सम्बन्धित होता है और उसके जीवन को अधिकतम आनन्दमयी बनाने के प्रति वचनबद्ध होता है।
कल्याणकारी राज्य केवल व्यक्ति की आर्थिक ज़रूरतों की पूर्ति ही नहीं करता, अपितु यह तो व्यक्ति के बौद्धिक विकास के साथ भी सम्बन्धित होता है और प्रत्येक वह कार्य करते हैं जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति एक सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के कारण उच्चे आकाशों में उड़ भी सके।
चलिए अब जानते है कि कल्याणकारी राज्य की धारणा के विरुद्ध क्या तर्क दिए गए हैं।
कल्याणकारी राज्य की आलोचना (Criticism of Welfare State)
कल्याणकारी राज्य की धारणा के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं:-
1. यह राज्य को अयोग्य बना देता है-
आधुनिक विचार के विरुद्ध पहली आपत्ति यह है कि यदि इस विचार को स्वीकार कर लिया जाए तो राज्य अयोग्य बन जाएगा। व्यक्ति आशा करेगा कि प्रत्येक कार्य राज्य द्वारा किया जाए। इसके अतिरिक्त जैसे-जैसे व्यक्ति की ज़रूरतें बढ़ती जाएंगी वैसे-वैसे राज्य के कार्य भी बढ़ते जाएंगे।
इस तरह राज्य बहुत सारे कार्यों के नीचे दबा दिया जाएगा। यूं भी यह सिद्धान्त श्रम के विभाजन (Division of Labour) के विरुद्ध है। इस तरह से राज्य की योग्यता मारी जाएगी।
2. व्यक्ति आत्म-निर्भर नहीं बन सकेगा-
कल्याणकारी राज्य का यह भी दोष है कि यह व्यक्ति को आत्म-निर्भर नहीं बनने देगा क्योंकि व्यक्ति प्रत्येक कार्य के लिए राज्य पर निर्भर करेगा और अपने पैरों पर खड़े होना सीखेगा ही नहीं।
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3. महंगा प्रवन्ध-
कल्याणकारी प्रबन्ध अधिक महंगा भी है। राज्य को जितने अधिक कार्य करने पड़ते हैं उतना ही अधिक खर्च होगा। लोग हर प्रकार की सविधा की आशा रखेंगे और राज्य को यह सभी सुविधाएं देने के लिए अधिक कर लगाने पड़ेंगे।
इससे नागरिकों पर अधिक करों का बोझ पड़ जाएगा। विशेष रूप में वे देश जो गरीब हैं उन्हें यह प्रबन्ध नहीं वहन हो सकता।
4. नागरिकों की स्वतन्त्रता में कमी-
कई आलोचकों का विचार है कि कल्याणकारी राज्य में नागरिकों की स्वतन्त्रताओं में कमी हो जाएगी क्योंकि राज्य का हस्तक्षेप अधिक होगा और परिणामस्वरूप नागरिकों को अपनी कुछ स्वतन्त्रताओं से हाथ धोना पड़ेगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
कल्याणकारी राज्य की आलोचना के होते हुए भी इसकी लोकप्रियता नित्य प्रतिदिन बढ रही है क्योंकि यह एक ऐसा प्रबन्ध है जिसमें नागरिकों के समूचे विकास की ओर ध्यान दिया जता है ।
इस विचारधारा की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जो राज्य कल्याणकारी नहीं भी हैं, कल्याणकारी होने का दावा करते हैं और इस प्रयास में हैं कि स्वयं को कल्याणकारी राज्यों की सूची में शामिल कर सकें।
वास्तविकता यह है कि केवल कल्याणकारी राज्य ही नागरिकों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास का प्रबन्ध कर सकता है। व्यक्ति का बहुपक्षीय विकास केवल प्रजातन्त्रीय कल्याणकारी राज्य में ही सम्भव है और प्रत्येक राज्य ने कुछ उद्देश्य निश्चित किए हैं।
उम्मीद करता हु कि आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। फिर भी यदि आपको कोई दिक्कत आ रही है, तो आप मुझसे contact कर सकते है।
धन्यवाद्।
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