हेलो दोस्तों इस आर्टिकल में हम कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के संबंध में समझेंगे। कई सारे स्टूडेंट्स को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में कंफ्यूजन होती है। इस कंफ्यूजन को दूर करने के लिए इस आर्टिकल को बनाया जा रहा है।
इस आर्टिकल में इन तीनों चीजों को कंबाइन करके लिखा गया है। जिससे आपको तीनों के बारे में समझ आए और इसके संबंध में कंफ्यूजन दूर हो।
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सामान्य बात
भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है और जो संविधान बनाया गया है उसमें कार्य करने वाले तीन अंग है-
- कार्यपालिका
- विधायिका
- न्यायपालिका
भारत में किसी भी प्रकार का कानून या विधि बनाने का कार्य विधायिका का होता है। विधायिका का क्या अर्थ है? विधायिका का अर्थ होता है विधेयक (Bill) बनाना अर्थात कोई बिल या कानून बनाने की शक्ति विधायिका के पास है और उस कानून या बिल को लागू करने की शक्ति कार्यपालिका के पास है तथा उस कानून को लागू करने में यदि कोई दिक्कत आती है या उसका कानून का कोई उल्लंघन करता है, तो उसे दंड देने की शक्ति न्यायपालिका के पास है। read also: राज्यपाल-शक्तियां एवं कार्य,अनुच्छेद और शक्तियां
कार्यपालिका
आपको पता होगा कि हमारे भारत में दो स्तर पर सरकार बनती हैं- राज्य स्तर तथा केंद्र स्तर पर। तो हमें कार्यपालिका के संबंध में जानना है कि राज्य स्तर पर कौन-कौन और केंद्र स्तर पर कौन-कौन हैं-
केंद्र स्तर | राज्य स्तर |
राष्ट्रपति | राज्यपाल |
उप राष्ट्रपति | मुख्यमंत्री |
प्रधानमंत्री | मंत्री परिषद |
मंत्री परिषद | केबिनेट मंत्री |
केबिनेट मंत्री | राज्यमंत्री |
राज्यमंत्री | उप मंत्री |
उप मंत्री |
विधायिका
कार्यपालिका के समान ही कानून या विधेयक दो स्तर पर बनाया जाता है- राज्य स्तर तथा केंद्र स्तर पर। आपको पता होगा कि तीन प्रकार के सूचियां होती हैं-
- केंद्र सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
अब जो केंद्र सोची है उस पर विधेयक बनाने का कार्य केंद्र को है और राज्य सूची पर विधेयक बनाने का कार्य राज्य को तथा जो समवर्ती सूची है उसमें केंद्र और राज्य दोनों विधेयक बना सकते हैं। विधायिका का मुख्य कार्य होता है केंद्र और राज्य सूची पर विधेयक या विधि बनाना।
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केंद्र
- विधि बनाने के संबंध में केंद्र स्तर पर जो व्यवस्था की गई है उसका नाम संसद है।
- अब केंद्र में कानून बनाने के लिए संसद के दो अंग है- लोक-सभा तथा राज्यसभा। ये दोनों सदन मिलकर विधेयक तैयार करते हैं।
- संसद के सदस्य संसदीय कहलाते हैं।
राज्य
- विधि बनाने के संबंध मे राज्य स्तर पर जो व्यवस्था की गई है उसका का नाम विधान मंडल है।
- राज्य स्तर पर भी दो अंगों ते हैं- विधानसभा तथा विधान परिषद्।
- विधानसभा सभी राज्यों में अनिवार्य होते हैं।
- But विधान परिषद सभी राज्यों में अनिवार्य नहीं होते हैं यह राज्य पर निर्भर करता है कि वह विधान परिषद रखना चाहते हैं या नहीं।
- इसके अलावा दो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली एवं पडुचेढी में भी विधानसभा है।
- विधान मंडल के सदस्य विधायक कहलाते हैं।
न्यायपालिका
कानून व्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए या फिर कानून का कोई उल्लंघन करता है तो दंड के प्रावधान के लिए न्यायपालिका को बनाया गया है। भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। उसे एकीकृत रुप में डाला गया है अर्थात ऊपर से नीचे तक एक सांखला के रूप में न्यायपालिका को चलाया जाता है। जैसे हमारे भारत में सबसे ऊपर सुप्रीम कोर्ट (SC) है और उसके नीचले स्तर पर हाईकोर्ट (HC) और फिर उस के निचले स्तर पर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट (DC) है तो इस तरह से न्यायपालिका का एक क्रमित सांखला बन जाती हैं जिसे एकीकृत न्यायपालिका कहते हैं।
इसकी एक खास विशेषता है कि यह हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए बराबर है। इसे राज्य और केंद्र स्तर पर नहीं बांटा जाता है बल्कि इसे एक एकीकृत रूप में डाला गया है। यदि आप डिस्ट्रिक्ट कोर्ट (DC) में केस करते हैं, But आपको उनका फैसला मंजूर नहीं तो आप हाईकोर्ट (HC) या सुप्रीम कोर्ट (SC) में केस कर सकते हैं।
अन्य बातें
शायद आपको अनुछेद 50 के बारे में पता होगा यदि नहीं तो मैं आपको बता दूं कि इस अनुछेद में न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग अलग काम करने की बात कही गई है अर्थात इनका एक दुसरे से कोई संबंध नहीं होगा। But जो कार्यपालिका है और जो विधायिका है वह मिलकर कार्य करते हैं। लेकिन न्यायपालिका और कार्यपालिका एक साथ कार्य नहीं करते हैं।
ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि यदि न्यायपालिका के जजो का संबंध कार्यपालिका के सदस्यों अर्थात सरकार के साथ होगा तो किसी भी कीमत पर न्याय होना संभव होगा और भारतीय जनता को सही न्याय नहीं मिलेगा। इसलिए इन दोनों को अलग अलग काम करने की बात अनुछेद 50 में कही गई है जिससे सरकार ना जजों पर दबाव बना पाएगी और ना ही एक दूसरे साथ संबंध होगा।
हमारे भारत तीन स्तभो पर टिका हुआ है-
- कार्यपालिका
- विधायिका
- न्यायपालिका
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Raj
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