जैन धर्म के संस्थापक कौन थे और कितने थे? जैन धर्म कैसे बना? बनाने के क्रम में क्या-क्या हुआ था? क्या जैन धर्म में स्त्रियां थी या नहीं? ये सभी बातें इस आर्टिकल में हम डिस्कस करेंगे। इस आर्टिकल में सरल भाषा का प्रयोग किया गया है हर एक Topic Point By Point मिलेगा
महावीर जैन का समय लगभग 2500 वर्ष पूर्व माना जाता है। वज्जि संघ के लिच्छवी कुल के क्षत्रिय राजकुमार थे। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने गृहत्याग कर दिया तथा जंगलों में रहने लगे, कठोर तपस्या करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
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पृष्ठभूमि
- जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर (संस्थापक) थे।
- प्रथम तीर्थंकर- ऋषभदेव पहले जैन धर्म के संस्थापक थे। इनको आदिनाम और वृषभनाम के नाम से भी जाना जाता है
- 22 वे तीर्थंकर- अरिष्टेनेमी 22 वे जैन धर्म के संस्थापक थे।
- 23 वे तीर्थंकर- पाश्र्वनाम 23 वे जैन धर्म के संस्थापक थे।
- पाश्र्वनाम का जन्म काशी/वाराणसी में हुआ था।
- इनके पिता का नाम अश्वसेन जो काशी के राजा थे।
- पाश्र्वनाम की चार शिक्षाएं-
1. सत्य
2. अहिंसा
3. सस्तंय
4. अपरिग्रह - 24 वे तीर्थंकर- महावीर स्वामी 24 वे जैन धर्म के व्यवस्थित संस्थापक थे।
महावीर स्वामी
- 24 वे तीर्थंकर थे।
- जन्म 540 BC मे कुण्डग्राम/वैशाली में हुआ था।
- मृत्यु 468 BC मे पावापुरी में पुरे 72 वर्ष होने के बाद हुई थी
- महावीर स्वामी के बचपन का नाम “बध्र्दमान” था।
- पिता का नाम सिद्धार्थ जो ज्ञात्रिक कुल के थे।
- माता का नाम त्रिशाला था।
- महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था।
- महावीर स्वामी की पुत्री का नाम अनोज्जा/प्रियदर्शनी था।
- ज्ञान की प्राप्ति के लिए गृहत्याग 30 वर्ष की आयु में किया था।
- ज्ञान की प्राप्ति- 12 वर्ष तक तपस्या करने के बाद, जम्भिक ग्राम के एक शाक वृक्ष के नीचे, ऋजुफलिका नदी के पास महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- महावीर स्वामी को कई नामों से जाना जाता था जैसे:-
1. जिन जिसका अर्थ “विजेता”
2. अह्रत जिसका अर्थ “योगी”
3. निर्गथ जिसका अर्थ “बंधन रहित”
4. महावीर जिसका अर्थ “साधना के प्रति समर्पण”
जैन सभाएं
सभा | स्थान | समय | अध्यक्ष |
प्रथम | पाटलीपुत्र | 4th BC | स्यूलमद |
व्दिदिय | वल्लयी | 6th BC | देवधिंगण |
जैन धर्म का विभाजन
श्वेतांबर | दिगंबर |
संस्थापक – स्युलभद्र | संस्थापक – भद्रबाहु |
श्वेत वस्त्र पहनते थे | पूर्णतया नग्नता |
स्त्रियों के लिए भी मोक्ष था | स्त्रियों के लिए मोक्ष संभव नहीं था |
ये महावीर स्वामी को भगवान मानते थे | ये महावीर स्वामी को पुरुष मानते थे |
मूर्ति पूजा भी करते थे | मूर्ति पूजा नहीं करते थे |
जैन साहित्य
- अंग-12 जिसमें जैन सिद्धांत के प्रमाण मिलते हैं।
- उपांग- 12 जिसमें अंग का विस्तार दिया गया है।
- प्रकीर्ण- ग्रंथों के परिशध।
- मूलसूत्र – 4।
- जैन सहित को “आगम” भी कहा जाता है।
- भगवती सूत्र– महावीर और अन्य जैन मुनियों का जीवन चित्रण मिलता है।
- फल्पसूत्र– जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास के बारे में पता चलता है जिसकी रचना भद्रबाहु ने की थी।
महावीर की शिक्षाएं
- उन्होंने कहा कि “सत्य की इच्छा रखने वाले लोगों को घर छोड़ देना चाहिए”।
- अहिंसा के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। “ना किसी जीव को कष्ट देना चाहिए”, “ना हत्या करना चाहिए”। महावीर का कहना था “सभी जीव जीना चाहते हैं, सभी को जीना प्रिय है”।
- महावीर ने भी अपने उपदेश प्रकृति भाषा में दिया
- जैन शब्द “जिन” शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है “विजेता”।
- महावीर जैन को जिन कहा गया क्योंकि उन्होंने अपने वासनाओं पर विजय पा लिया था।
- जैन धर्म को अपनाने वाले मुख्यता: व्यापारी वर्ग के लोग थे। किसानों के लिए जैन धर्म “अहिंसा” वृत को अपनाना मुश्किल था Because खेती करने में कीड़े-मकोड़ों को मारना पड़ता था।
- यह धर्म उत्तर भारत के कई हिस्सों के साथ गुजरात, तमिलनाडु, तथा कर्नाटक में भी फैला हुआ था।
- जैन धर्म की शिक्षाओं का लिखित संकलन लगभग 1500 वर्ष पूर्व गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर हुआ इसके पहले कई वर्षों तक यह मौखिक ही चलता रहा था।
उपदेश एवं शिक्षाएं
- प्रथम उपदेश राजग्रह में दिया गया था।
- प्रथम शिष्य जमिल/जामालि था जो वास्तव में महावीर स्वामी का दामाद था।
- महावीर स्वामी ने उपदेश दिया था कि संसार दुःखमय है और दुःख का कारण “कर्मफल” हैं।
- दुःख की मुक्ति के लिए त्रिरत्न के मार्ग का पालन करना चाहिए।
- पहला त्रिरत्न- सम्भक “दर्शन” जिसका अर्थ “सत्य में विश्वास”।
- दूसरा त्रिरत्न- सम्भक “ज्ञान” जिसका अर्थ “वास्तविक ज्ञान”।
- तीसरा त्रिरत्न- सम्भक “आचरण” जिसका अर्थ “सुख-दुख में समान”।
- पांच महाव्रत- सत्य, अहिंसा, सस्मतेय, अपरिग्रह और ब्रहमचर्य।
- इन पांच महाव्रत मैं से महावीर स्वामी ने “अहिंसा” को सबसे ज्यादा महत्व दिया है।
- स्यावाद और अनेकांतवाद का संबंध जैन धर्म से है।
- आत्मवादियो ( जो भगवान को मानते हैं) और नास्तिक (जो भगवान को नहीं मानते हैं)के बीज के मार्ग को स्यावाद और अनेकांतवाद कहते हैं।
- महावीर स्वामी ने संघ की स्थापना की। जिसने 11 अनुयायी थे।
- 11 अनुयायी को “गणधर” कहां जाता था।
- गणधर का प्रमुख महावीर स्वामी थे।
- महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद संघ प्रमुख सुरधमन बना था।
अन्य बिंदु
- खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश) जो उंडेल शासको द्वारा बनवाया गया था। खजुराहो मंदिर मैं हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का भी प्रमाण मिलता है।
- माउंट आबू (राजस्थान) जो सोलंकी शासकों ने दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण करवाया था। यह भी जैन धर्म से संबंधित है।
- क्षवणबैलगोला (कर्नाटक) में एक बाहुबली की विशाल मूर्ति जो गंग वंश के मंत्री चमुंड राय ने बनवाया था।
- बाहुबली के संबंध में यहां पर प्रतेक 12 वर्ष पर “महमस्तयसि्वेक” नामक एक प्रकार का त्यौहार मनाया जाता है। जो जैन धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। इसमें बड़ी संख्या में बाहुबली की पूजा की जाती है।
- महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध दोनों का ही मानना था कि घर का त्याग करके पर ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। ऐसे लोगों के लिए उन्होंने संघ नामक संगठन बनाया। जहां घर का त्याग करने वाले लोग एक साथ रह सके।
- कार्ल (वर्तमान महाराष्ट्र) नामक एक गुफा है जहां भिक्षुक-भिक्षुणी शरण लेते थे।
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