इस आर्टिकल में हम मगध साम्राज्य का प्रशासन, उसके सैन्य विभाग, न्याय व्यवस्था, गुप्तचर और नगर प्रशासन आदि के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। इससे पहले हमने मगध साम्राज्य के संबंध में मगध का उत्कर्ष और उसके वंशों में हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नंद वंश और मौर्य वंश के बारे में जाना था और आज इस आर्टिकल में मगध साम्राज्य का प्रशासन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मगध साम्राज्य का प्रशासन
इस साम्राज्य का प्रशासन बहुत बड़ा और शक्तिशाली था। इस वंश के राजा सबसे हेड होता थे और जितनी भी प्रशासनिक व्यवस्था जैसे: सैनिक शक्ति, न्याय शक्ति आदि सारी की सारी शक्तियां राजा के पास होती थी। राजा अपने प्रशासन को विभिन्न मंत्रियों और अधिकारियों के माध्यम से चलाते थे। लेकिन Remaining determination राजा ही लेता था। विभिन्न मंत्री और अधिकारी केवल राजा के मदद के लिए ही होते थे। यहां तक कि मौर्य वंश को केंद्रीय प्रशासन के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि सारी शक्तियां केंद्र में निहित होती थी और आपको पता होगा कि पूरे प्रशासन का केंद्र राजा ही होता था। राजा की सहायता के लिए बहुत मंत्री होते थे जिन्हें आमत्य कहा जाता था।
कुछ अन्य मंत्री भी होते थे जैसे: सेनापति, पुरोहित, आदि इसके अलावा भी अन्य अधिकारी जन होते थे जो राजा को प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने में मदद करते थे उन धिकारियों को शीर्षस्थ अर्थात तीर्थ कहकर संबोधित किया जाता था। इन सभी अधिकारियों के द्वारा राजा प्रशासन को चलाता था।
प्रमुख मंत्री
- समाहर्ता – ये राजस्व विभाग के प्रधान होते थे अर्थात tax जैसे कामों को देखने वाले।
- सन्निघाता – ये राजकीय कोषाध्यक्ष के ऐड होते थे जैसे वर्तमान में वित्तमंत्री।
- सीताध्यक्ष – ये राजकीय कृषि विभाग के अध्यक्ष होते थे जो संपूर्ण कृषि गतिविधियों को देखते थे।
- पग्ध्यक्ष – ये वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष होते थे।
सैन्य विभाग
यह एक महत्वपूर्ण विभाग था क्योंकि आपको पता होगा कि मगध साम्राज्य एक बहुत बड़ा साम्राज्य था। इसका विस्तार लगभग अफगानिस्तान के उत्तर, पाकिस्तान आदि क्षेत्र भी भारत में शामिल थे। ऐसे में इतने बड़े साम्राज्य को चलाने के लिए सैनी विभाग होना जरूरी था। सैन्य विभाग के हैड सेनापति कहलाते थे। सेनापति अध्यक्ष सेना का संचालन और राजा का सहयोग करते थे। उस समय के इतिहासकारो में जस्टिक और पिन्नी ने बताया है कि मगध साम्राज्य में चार प्रकार की सेना देखने को मिलती है-
- पैदल सेना
- हाथी सेना
- घुड़सवार सेना
- रथ सेना
न्याय व्यवस्था
प्रशासन एक मुख्य बिंदु होता है कि जहां न्याय व्यवस्था अच्छी होगी वहां पर प्रशासन लंबे समय तक चल सकता है। ऐसे में मगध साम्राज्य का एक अच्छा प्रशासन होने के साथ साथ न्याय व्यवस्था भी अच्छी देखने को मिली है। किसी को दंड देना या न्याय करना सब राजा के हाथ में होता था। लेकिन इतने बडे और विशाल साम्राज्य में अकेले स्वयं राजा का न्याय कर पाना कठिन था। तो ऐसे में अलग-अलग क्षेत्र में कई संस्थाएं न्यायालय स्थापित किए गए थे उन स्थानीय न्यायालय के हैड को राजू कहा जाता था। न्यायालय दो भागों में विभाजित था-
- धर्मस्थानीय न्यायालय – इन न्यायालय में दीवानी मामले सुलझाए जाते थे जैसे- जमीन से जुड़े हुए मामले आदि।
- कंरकशोधन न्यायालय – इन न्यायालय में फौजदारी मामले सुविधाएं जाते जैसे- चोरी, डकैती, खून आदि।
गुप्तचर
मगध साम्राज्य में न्याय व्यवस्था होने के साथ-साथ राजा को अपने बाहरी विभाग से सूचना प्राप्त करने के लिए एक गुप्तचर की जरुरत होती थी। सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से यहां पर एक गुप्तचर विभाग भी बनाया गया था। मगध साम्राज्य में गुप्तचर की नियुक्ति की जाती थी और गुप्तचर के माध्यम से राजा पता लगाते थे कि समाज में उनके प्रतीक क्या भावना है। इसके अलावा गुप्तचर राजा के विरुद्ध किए जा रहे सरयंत्र का भी पता लगाते थे। गुप्तचर को अर्थशास्त्र में गूढ पुरुष कहा गया है। इसके अलावा गुप्तचर के संबंध में अर्थशास्त्र में एक जानकारी मिलती है कि गुप्तचर दो प्रकार के होते थे-
- संस्था – ये किसी एक स्थान पर रहकर राजा के संबंध में या समाज के संबंध में जानकारी इकट्ठा करते थे।
- संचार – ये पूरे समाज में घूम-घूम कर सोचना इकट्ठा करते थे।
प्रांत
जैसे हमारे देश को कई राज्यों बाटा गया। उसी प्रकार से मौर्य साम्राज्य जो इतना विशाल या बड़ा था उसे भी 5 प्रांतों में बाटा गया था। इन प्रांतों को चक्र भी कहते है-
संख्या | प्रांत | राजधानी |
1. | उत्तरापंथ | तक्षशिला |
2. | दक्षिणापंथ | स्वर्णगिरी |
3. | प्राशी (पूर्वी) | पाटलीपुत्र |
4. | अवंती | उज्जयिनी |
5. | कलिंग | तोसली |
विषय
प्रांतो को छोटे-छोटे भाग में विभाजित किया गया था। जिसे विषय कहा गया है। इन विषय के हैड को विषयपति कहते थे। जबकि प्रांतो के हैड राजा के पुत्र होते थे जिन्हें कुमार कहा जाता था। विषयो के नीचे भी छोटे छोटे गांव बनाए गए थे। जिसमें 10 गांव के समूह को “गोप” कहा जाता था।
नगर प्रशासन
हमारे देश में कुछ नगर हैं तो कुछ गांव, तो Identical उसे प्रकार से मौर्य साम्राज्य में भी कुछ नगर थे। उन नगरों को चलाने के लिए एक अलग प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता थी As a result of नगरों की संख्या हमेशा ज्यादा होती थी। संख्या ज्यादा होने के कारण प्रशासन दुविधा बढ़ जाती थी। तो ऐसे में नगर प्रशासन को चलाने के लिए विशेष प्रशासन की जरुरत पड़ती थी।
मेगास्थनीज ने अपनी indica पुस्तक में इस नागर प्रशासन के संबंध में विस्तार जानकारी दी है। इन्होंने बताया है कि नगर प्रशासन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए 6 प्रकार की समितियां बनाई गई थी और सभी समितियां को अलग-अलग काम दिए गए थे। इसके अलावा सभी समितियों में पांच सदस्य होते थे अर्थात एक समिति में पांच सदस्य होते थे और कुल 6 समितियां थी। तो इस प्रकार से Complete 30 सदस्यों की कमेटी होती थी इन सदस्यों द्वारा ही नगर प्रशासन अच्छे ढंग से काम कर पाता था।
समाज
- कोटिल्य के अनुसार समाज Four वर्ग में बटा हुआ था:- 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य, 4. शूद्र। कोटिल्य के अनुसार दास प्रथा थी।
- मेगास्थनीज के अनुसार समाज 7 वर्ग में विभाजित था:- 1. दार्शनिक, 2. किसान, 3. अहीर, 4. कारीगर, 5. सैनिक, 6. निरीक्षक, 7. सभासद। मेगास्थनीज के अनुसार दास प्रथा नहीं थी।
- स्त्रीयो की स्थिति ठीक थी क्योंकि उन्हें शिक्षा का अधिकार मिला था पर इतनी भी अच्छी नहीं थी। क्योंकि तलाक की प्रथा भी थी और इसके साथ ही यहां वेश्यावृत्ति की भी प्रथा थी जो स्त्रियां वेश्यावृत्ति करती थी उन्हें रूपाजीवा कहा जाता था।
अर्थव्यवस्था
- अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था।
- कृषि कार्य से टैक्स प्राप्त करके राजा अपने राजस्व को बढाते थे।
- मौर्य काल में जो कृषि पर टैक्स लिया जाता था वह लगभग 1/6 से 1/4 लिया जाता था।
- टैक्स की वसूली राजस्व करता था।
- टैक्स वसूली करके राजकोष में रखते थे और इन्हीं के माध्यम से राजा खर्च और प्रशासन को चलाता था।
- इसका आर्थिक स्रोत व्यापार था।
- व्यापार आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार से होता था।
- प्रमुख उद्योग वस्त्र था।
- व्यापार को संचालित करने के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता था।
- यहां व्यापार के संबंध में टैक्स की चोरी भी की जाती थी और चोरी करने वालों को मृत्युदंड दिया जाता था। इतना कठोर नियम इसलिए बनाया गया था क्योंकि राजा के पास अगर आय नहीं होगी तो वह कहीं से भी प्रशासन को नहीं चला पाएगा और राजतंत्र कि यह एक परंपरा होती है कि जितना कठोर नियम होगा, उतना ही राजतंत्र access कर पाएगा।
Necessary: भडोज एक प्रमुख बंदरगाह था जिसका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता था
कला
सिंधु घाटी सभ्यता के बाद कला व्यवस्थित विकास मौर्य काल में प्रारंभ होता है अर्थात सिंधु घाटी सभ्यता में कला के विभिन्न रुप देखने को मिलते हैं जैसे- बडी संख्या में वहां से अलग-अलग नगर प्राप्त हुए, नगरीय संरचना देखने को मिली, कच्ची पक्की ईटो का प्रयोग और मूर्तियां आदि देखने को मिलती हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद वेदिक सभ्यता में कला विलुप्त हो जाती है, बहुत कम मात्रा में कला देखने को मिलती है। लेकिन मौर्य काल में कला व्यवस्थित रुप से प्रारंभ होती है | मौर्य काल में कला पत्थरों पर की जाती थी ताकि वह लंबे समय तक टिक सके |
शिलालेख
- शिलालेख की संख्या 14 है। यहा भारत के अलग-अलग जगहों से प्राप्त किया गया है।
- प्रथम शिलालेख – पशुबली की निंदा।
- चौथा शिलालेख – भरीघोष की जगह धम्मघोष।
- भरीघोष का मतलब “युद्ध की नीति”।
- धम्मघोष का मतलब “धर्म की नीति”।
- पांचवा शिलालेख – महामात्रो की नियुक्ति ।
- सातवां और आठवां शिलालेख – तीर्थ यात्रा का उल्लेख।
- तेरहवा शिलालेख – कलिंग युद्ध और ह्रदय परिवर्तन का वर्णन।
Necessary: सारनाथ स्तंभ – यह इंपॉर्टेंट है इसमें चार शेरों के सिर लगे होते हैं और इसके नीचे घोड़े,हाथी, शेर,बैल और फिर इसके नीचे 24 तीलियों वाला चक्र होता है इसी में से हमारा राष्ट्रीय चिंह लिया गया है।
महालेख
बराबर की पहाड़ियों में आजीविको के लिए अशोक ने निवास स्थान बनवाया था और उसके पोत्र दशरथ ने नागार्जुन पहाड़ी में गुफा का निर्माण करवाया था जो कहीं ना कहीं कला को संबोधित करता है।
Necessary: प्रमुख स्तूप सांची, भरहूल। प्राचीन ग्रंथ से यह पता चला है कि अशोक ने 84000 स्तूप बनवाए थे।
राजप्रसाद
यह राजा का महल था। राजप्रसाद मौर्य काल मे बहुत प्रसिद्ध रहा है। मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने एक राजा का महल पाटलीपुत्र में बनवाया था और इस महल के संबंध में जितने भी विदेशी यात्री थे उन्होंने बताया है कि यह एक ऐसा महल था। जिसकी तुलना देवताओं के महल से की जा सकती है। इस महल की सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह 80 पिलर पर बना विशाल महल था। उस पिलर का निर्माण पत्थरों से किया गया था। ऐसा पहली बार देखने को मिलता है कि बड़े-बड़े महलों में पत्थरों का उपयोग किया जाता है। इस महल की छत और फर्श को लकड़ी से बनाया गया था।
अशोका का धम्म
आप को पता होगा कि अशोक ने जब कलिंग के साथ युद्ध करने के बाद हृदय परिवर्तन किया तो उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया था। बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद उसने कई तरह की नई नीति और कई सारे विचारों को अपनाया। यही कारण है कि बहुत सारे इतिहासकार अशोक के धम्म को एक अलग रुप में देखते हैं और ऐसा मानते है कि अशोका का धम्म केवल बोद्ध धर्म ही नहीं, बल्कि उस में कई धर्म का सार है। इस कारण अशोक के धर्म को सभी धर्मों के सार के रूप में देखा जाता हैं।
धर्म प्रचार
अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था ताकि वहां जाकर बुद्ध धर्म का प्रचार कर सके।इसी प्रकार से उसने अपनी पुत्री को नेपाल भेजा ताकि वह वहां जाकर धर्म का प्रचार कर सके। धम्म महामात्रो की नियुक्ति की गई यह एक ऐसा पद था जिसका काम था कि वह प्रतेक 5 वर्षों में घूम-घूम कर समाज में के लोगों को धार्मिक मामलों के बारे में जागरूक करें। साथ ही अशोक कई धर्म यात्रो पर गया था।
धम्म यात्रा का क्रम
गया से कुशीनगर, कुशीनगर से लुम्बनी, लुम्बनी से कपिलवस्तु, कपिलवस्तु से सारनाथ, सारनाथ से क्षाव्ती इसके अलावा अशोक पहली बार अपने शासन के 10 वे वर्ष में बोधगया की यात्रा की थी और फिर 20 वे वर्ष में रुम्मिढेई की यात्रा पर गया था।
you can follow on telegram channel for daily update: yourfriend official
Yourfriend इस हिंदी website के founder है। जो एक प्रोफेशनल Blogger है। इस site का main purpose यही है कि आप को best इनफार्मेशन प्रोविडे की जाए। जिससे आप की knowledge इनक्रीस हो।
Leave a Reply