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वेद (Vedas) क्या है? वैदिक साहित्य (Vedic Literature) 2020 Update

वेद (Vedas) क्या है? वैदिक साहित्य (Vedic Literature) 2020 Update

posted on January 8, 2021

वैदिक साहित्य (Vedic Literature):- वैदिक (Vedas) साहित्य आर्यों की बहुमूल्य देन है, जो हजारों वर्षा से भारतियों के अन्धेरे जीवन को एक प्रकाश दे रहा है। वैदिक साहित्य में केवल वेद (Vedas) ही नहीं आते अपितु प्राचीन काल का बहुत सारा साहित्य आ जाता है, जिसमें वेदों के सार और उनके मंत्रो की व्याख्या की गई।

अतः वैदिक साहित्य में चार वेदों के अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, वेदांग, उपवेदांग, उपनिषद, सूत्र, दर्शन, पुराण, महाकाव्य भी आ जाते है। Read More: प्राचीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्त्रोत (Man Suurces of Early Indian History)

चुकि इन ग्रन्थों की रचना एक समय पर नहीं हुई, इसलिए इन्हें दो भागों में विभक्त किया गया है:- (1) श्रुति (Sruti), (ii) स्मृत्ति (Samriti)। श्रुति में वह साहित्य आता है जो धार्मिक परम्पराओं के अनुसार ऋषियों मुनियों के इश्वर से लिया था और मौखिक रूप से अपनी सन्तान को दे दिया। इसलिए इस साहित्य को बहुत पवित्र और उच्च माना जाता है।

स्मृत्ति वैदिक साहित्य का वह भाग है जो बाद में ऋषि मुनियों ने अपनी स्मरण और विचार शक्ति के आधार पर लिखा । वेदों के अतिरिक्त शेष सारा साहित्य इस भाग में आता है। इसे श्रुति जितना पवित्र नहीं समझा जाता।

वेद क्या है चलिए इसके बारे में जानते और समझाते है।

वेद (Vedas) क्या है?

वेद (Vedas) शब्द संस्कृत के ‘विद’ शब्द से बना हुआ है जिसका अर्थ है , जानना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना है। हिन्दू धर्म वाले वेदों को अनादि और ईश्वर रचित कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ में उस प्रभु की मेहरबानी और कृपया से अधिक ज्ञान ऋषियों को हुआ था। वेदों में ईश्वर की महिमा की गई है। ईश्वर से विद्या और बद्धि के लिए प्रार्थना की गई है।

इसके अतिरिक्त वेदों (Vedas) में ज्योतिष, औषधि भूगर्भ विद्या, जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग के बारे में भी बहुत ज्ञान मिलता है। वेदों की संख्या चार हैं-

  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. यजुर्वेद
  4. अथर्ववेद

1. ऋग्वेद (Rigveda)

यह दो शब्दों से मिलकर बना है। रिग और वेद । रिग का अर्थ है मंत्रो की स्तति। इस प्रकार जो वेद मंत्रो की स्तुति का समूह है उसे ऋग्वेद कहा जाता है। यह विश्व का अति प्राचीन और अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं और 10,500 मंत्रो हैं। इसके दस मण्डल (काण्ड) हैं। प्रत्येक सूक्त अपने आप में पर्ण है।

मंत्रो में जिस देवता की स्तुति की गई है, वही उसका देवता है जिसने मंत्र के अर्थ का सबसे पहले दर्शन किया वही उसका ऋषि है। ऋषि तो तीन सौ से अधिक ही होंगे, परन्तु उसमें अत्तरी, भारद्वाज, वशिष्ठ, विश्वामित्र, वासुदेव और कण्ठ बहुत प्रसिद्ध हैं।

ऋग्वेद में देवताओं को मनुष्य रूप ही दिया गया है। ये देवता प्रसन्न होकर मनुष्य के कई कार्य करते थे। जहां देवताओं की स्तुति की गई है, वहां उनकी शक्ति, कार्य और वीरताओं का भी वर्णन किया गया है। इसमें इन्द्र, अग्नि और वरुण की स्तुति की गई है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र भी ऋग्वेद में है। आर्य लोग बलि और प्रार्थना के समय इस मंत्र का उच्चारण करते थे।

ऋग्वेद में जीवन के कई पक्षों के बारे में मंत्र आते हैं। ऋग्वेद की भाषा काफी सुन्दर और इसकी कल्पना काफी बलवान है। ऊषा का वर्णन बहुत ही कमाल का है। इससे उस समय के भूगोल का बहुत ज्ञान मिलता है। इस वेद का ऐतिहासिक महत्त्व बहुत है क्योंकि उस समय का इतिहास जानने का यह मुख्य ग्रन्थ है।

2. यजुर्वेद (Yajurveda)

यजुर्वेद दो शब्दों से बना है- यज और वेद, यज का अर्थ है यजन अर्थात् पूजना । इस प्रकार यजुर्वेद उसे कहा जाता है जिसमें यज्ञों का विधान हो। अतः यह कर्म काण्ड प्रधान वेद है। इसे पढ़ने से पता चलता है कि आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में कितना परिवर्तन आ गया था।

प्राचीन आर्यों की भान्ति उस समय के आर्यों ने प्रकृति की पूजा छोड़ कर कर्मकाण्ड का पल्लू पकड़ लिया था। जाति प्रथा ने जन्म ले लिया था और बलि की प्रथा भी समाप्त हो चुकी थी। इसके 40 अध्याय हैं और 1990 मंत्र हैं। इसके दो भाग हैं। एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल। पहले में केवल मंत्र ही इकट्ठे किये हुए हैं और दूसरे में मंत्र के साथ-साथ गद्यात्मक भाग भी हैं।

इस प्रकार यह वेद यज्ञ प्रधान है जिसके कारण उस समय ब्राह्मणों का महत्त्व बढ़ने लगा। इससे यह भी पता चलता है कि आर्य सब सप्त सिन्ध से कुरुक्षेत्र की तरफ चले गये थे। इसका ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों पक्षों से बहुत महत्त्व है।

3. सामवेद (Samveda)

साम का अर्थ तो शान्ति होता है परन्तु यहां साम से ‘गीत’ अर्थ लिया गया है। अतः सागवेद से अभिप्राय वह वेद है जो संगीतमय हो । यह वेद गायन प्रधान वेद है जिसे वैदिक काल की गायन विद्या का उदाहरण कहा जा सकता है। इसमें यज्ञों पर गाये जाने वाले मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र हवन के समय देवता को प्रसन्न करने के लिए गाये जाते हैं।

इन्हें गाने वाले ‘उदगाता‘ कहलाते हैं। इसमें 1549 मंत्र हैं। इसके अपने केवल 75 मंत्र हैं। शेष सब ऋग्वेद के आठवें अथवा नौवें मण्डल से लिये गये हैं। इसके मंत्र गाने के लिए सात स्वरों का प्रयोग होता है । यहीं से संगीत का मूल प्राप्त होता है। यहीं से भारत की प्राचीन समय के संगीत की उन्नति का पता चलता है।

4. अथर्व वेद (Atharva Veda)

इसके शाब्दिक अर्थ इस प्रकार बनते हैं कि अथ का अर्थ तो मंगल अथवा कल्याण। अथर्व का अग्नि और अथर्व का अर्थ पुजारी है। इस प्रकार अथर्ववेद उस वेद को कहा गया है जिसमें पुजारी मंत्रो और अग्नि की सहायता से मनुष्य को भूत प्रेतों से बचाकर उसका कल्याण करते हैं । इस ग्रन्थ में 5,839 मंत्र, 720 सूक्त और 20 मण्डल है।

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इसमे भूत प्रेतों का वर्णन भी है और उनसे बचने के लिए मंत्र भी हैं। इसमें 1200 के लगभग मंत्र ऋग्वेद के ही हैं। यज्ञों के बारे में बहुत कम मन्त्र हैं। शेष औषधि के बारे में काफी मन्त्र हैं। बुखार, सांप के विष को ठीक करना, पीलिया, खांसी, कुष्ठ रोग और अन्य बीमारियों का इलाज और औषधि बताया गया है।

वेदों का महत्त्व क्या है चलिए इसके बारे में जानते है।

वेदों का महत्त्व (Importance of Vedas)

वेद (Vedas) आर्यों के बहुत प्राचीन ग्रन्थ होने के कारण बहुत महत्त्व रखते हैं। इतने पुराने ग्रन्थ विश्व में किसी भी अन्य कौम के पास नहीं हैं। प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के ये बहुमूल्य भण्डार हैं।

उनसे पूर्व वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल की आर्यों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में पूर्ण ज्ञान मिलता है। वेद (Vedas) भारतीय संस्कृति और दर्शन का स्रोत हैं । ऐतिहासिक पक्ष से भी उनका बहुत महत्त्व है।

ब्राह्मण ग्रन्थ (Brahmans)

ब्राह्मण शब्द “ब्रह्मा” से बना है जिसका अर्थ वेद (Vedas) होता है। इसलिए ब्राह्मण ग्रन्थ उन्हें कहा जाता है, जिनमे वेदों मंत्रो (Vedas mantr) की व्याख्या की गई हो। इनमें यज्ञों के स्वरूप और ढंग बताये गये है। इसके अतिरिक्त सृष्टी सम्बन्धी विचार पर कहीं-कहीं प्राचीन ऋषियों और राजाओं की कथाएं भी आती हैं।

जिस प्रकार कठिन पुस्तकों को सरल करने के लिए आजकल टिका- टिप्पणियां बनी हई हैं। उसी तरह ‘ब्राह्मण ग्रन्थ’ भी वेदों (Vedas) की टिप्पणिया है।

प्रत्येक वेद (Vedas) के अपने-अपने ब्राह्मण हैं-

  • ऋग्वेद के ब्राह्मण है- ऐत्रेय (Aiterival) और कौशीतकी (kaushitaki)।
  • कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण- तैत्रेय (taitreya) और शकुल यजुर्वेद का ब्राह्मण- सत्पथ (Satapatha)
  • सामवेद के चार ब्राह्मण ताण्ड, छडावश, जान (Taitreya) और पंचाविस हैं।
  • अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण है।

इन सभी ब्राह्मणों से हमे उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का पता चलता है। यह सत्य है कि ऐतिहासिक पक्ष से इनका अधिक महत्त्व नहीं परन्त फिर भी हमारे ज्ञान में ये ग्रन्थ बहुत वृद्धि करते हैं।

आरण्यक (Aranyakas)

यह अर्णय’ शब्द से बना है जिसका अर्थ ‘जंगल’ होता है। अतः आरण्यक वे ग्रन्थ हैं, जिनकी रचना जंगल में हुई और जिन्हें जंगल और शान्तमय वातावरण में पढना चाहिए। इन्हें ब्राह्मणों का ही अंग समझा जाता है जो वनों में रहने वाले साधु सन्तों की सहायता के लिए लिखे गये थे।

इनमें जीवन के रहस्यों, दर्शन और कर्मकाण्डों के बारे में भी ज्ञान मिलता है। इनमें आत्मा और ब्रह्मा के बारे में उत्तम विचार दिये गये हैं। मुख्य आरण्यक ये हैं-(1) ऐत्रेय आरण्यक, (2) तेत्रीय आरण्यक, (3) मैत्रायिणी आरण्यक, (4) शंखयान आरण्यक, (5) तलवकार आरण्यक, (6) याध्यानिन्दन बृहद आरण्यक ।

उपनिषद (Upnishads)

उपनिषद तीन शब्दों से बना है। ‘उप’ का अर्थ है समीप, ‘नि’ का अर्थ है नीचे और ‘शद’ का अर्थ है ‘बैठना’ इस प्रकार उपनिषद उन ग्रन्थों को कहा जाता है जिनका अध्ययन गुरु के समीप नीचे बैठ कर श्रद्धा से किया जाता है। इस का ज्ञान केवल योग्य व्यक्तियों को ही दिया जाता है। उपनिषद् ज्ञान प्रधान है।

सारे विश्व में उपनिषदों जैसा आध्यात्मिक ज्ञान का अन्य कोई ग्रन्थ नहीं है। उन्हें वेदान्त भी कहा जाता है क्योंकि जो दर्शन वेदा के अंतिम भागा में छुपा हुआ है उसकी खुली चर्चा उपनिषद में कई बार की गई है।

इसके अतिरिक्त पुनर्जन्म कर्मवाद, मुक्ति और मुक्ति के साधन तथा माया के बारे में ज्ञान दिया गया है। इनके अनुसार एक ही धर्म ब्रह्म है जो अनन्त है। वह सर्वव्यापक और अर्तयामी है । ये भारतीय संस्कृति के बहुमूल्य भण्डार हैं। इनके पढने से मनुष्य को अद्भुत शान्ति की प्राप्ति होती है

इन उपनिषदों ने विश्व के बहत से लोगों पर प्रभाव डाला हा अनुवाद अंग्रेजी, फारसी, फ्रांसीसी और जर्मनी इत्यादि “हमारे आधुनिक युग तक जो महत्त्व ईसाइयों के लिए उपनिषदों का है, यह एक श्रेष्ठ धर्म प्रणाली है।

उपनिषदों की संख्या तो 108 है परन्तु इनमें से अधिक प्रसिद्ध केवल 11 है। केन (Kena), ईश (Isa), प्रसन laka), माण्डकय (Mandukya), ऐतर (Aiteriya).तैतरे (Taitteriya), कठ (Kath), छंदगया (chhandgya), ब्र्हिदारान्य्क (Brhidaranyka), शवेताश्वतर (Svetasvatra)

सूत्र ग्रंथ (Sutra)

सूत्र का अर्थ होता है “धागे में पिरोना“। इस प्रकार सूत्र उन ग्रन्थों को कहा जाता है जो ऐसे लिखे गये हैं जैसे कोई वस्तु धागे में पिरो दी गई है। विद्वानों का विचार है कि सूत्रों की रचना 700 ई० पूर्व से 200 ई० पूर्व तक की गई होगी। जिस समय सामाजिक रीती-रिवाजो की संख्या बहुत बढ़ गई हो, जिनसे उन सामाजिक रीती-रिवाजो मौखिक याद रखना बहुत कठिन हो गया।

पहले सब रीति रिवाज भिन्न-भिन्न पुस्तकों के साथ लिख दिये जाते थे। फिर धीरे-धीरे उन्हें, अलग लिखना आरम्भ कर दिया गया अर्थात् उन्हें सूत्रों में लिख दिया गया, जैसे धागे में पिरो दिया हो। सत्रों में सारे रीति रिवाज, जन्म से मृत्यु तक सब सस्कार लिखे गया हो। यह कविता के वार्तक दोहों में हैं। इनकी तीन किस्में हैं:-

  1. श्रीत सूत्र (Shrauta Sutras)
  2. गृह सूत्र (Griha Sutras)
  3. धर्म सूत्र (Dharam Sutra)

1. श्रीत सूत्र (Shrauta Sutras):-

श्रोत सूत्र में आर्यों की बलि देने की विधियों, यज्ञों की विधियों का वर्णन आता है। इस सूत्र में कई रीति-रिवाज हैं जिनमें से कछ रोजाना करने वाले (Regular) हैं और कुछ कभी-कभी करने वाले (Occasional) हैं।

आग जला कर कई वस्तुओं की आहुतियां दी जाती थीं। ये आहुतियां देवताओं को प्रसन्न करने के लिए दी जाती थीं। जिस उद्देश्य से यज्ञ करवाया जाता था, वेद (Vedas) मन्त्रों के पढ़ने से वह पूर्ण हो जाता था। इस प्रकार के रीति रिवाजों के बारे में ज्ञान इन सूत्रों से मिलता है।

2. गृह सूत्र (Griha Sutras)

गृह सूत्र में पारिवारिक जीवन सम्बन्धी रीति रिवाजों के बारे में ज्ञान मिलता है। इसमें विशेषतया 16 संस्कारों का वर्णन बहुत विस्तार से दिया गया है। Read More: Aatmnirbhar App Download | Aatmnirbhar APK Download

जन्म से मृत्यु तक सारे मानव कर्त्तव्य इसमें दिये गये हैं। इसमें पारिवारिक जीवन के बारे में बहुत ज्ञान मिलता है। वैसे कुल संस्कार 40 हैं। परन्तु उसमें से 18 मुख्य हैं।

3. धर्म सत्र (Dharam Sutra)

धर्म सूत्रों में न्याय सम्बन्धी बातें लिखी गई हैं। धर्म सूत्रों के लेखकों के विचार एक दूसरे से काफी भिन्न हैं। धर्म सूत्र हमारे सामने विवाह सम्बन्धी सामाजिक रिवाजों विरासत की प्रथा और जाति प्रथा के बारे में अलग-अलग तत्त्व रखते हैं।

इनमें बताया गया है कि राजा को कानून का स्त्रोत होने के स्थान पर कानून का रक्षक होना चाहिए। वैदिक परम्पराओं को कायम रखना और सामाजिक रिवाजों की रक्षा करना भी राजा के कर्त्तव्य है। उसे प्रजा के हितों की रक्षा करनी चाहिए।

राजा को न्याय करते समय ग्रन्थों के अतिरिक्त रीति-रिवाजों का भी ध्यान रखा जाता था। ब्राह्मण को मारना सबसे बड़ा पाप समझा जाता था । धर्म सूत्र में शहरों से गाँवों का जीवन बहुत अच्छा बताया गया है। धर्म सूत्रों के अनुसार शहरों के रहने वाले मक्ति नहीं पा सकते है।

5. शुलब सूत्र

इस सूत्र में योग विद्या के निर्माण का वर्णन किया गया है।

वेदांग (Vedangas)

कुछ देर/समय के बाद वेदों के अर्थ अच्छी तरह समझना और उनके मंत्रो का उच्चारण करना कठिन हो गया। इसलिए वेदों (Vedas) के सरलार्थ के लिए नये ग्रंथ लिखे गये जिन्हें वेदांग अर्थात् वेदों का अंग कहा जाता है। वेदांग की संख्या 6 है:-

  1. शिक्षा (Phonetics)
  2. छंद (Metrics)
  3. निरुक्त (Nirokt)
  4. व्याकरण (Grammer)
  5. ज्योतिष (Jyotish)
  6. कल्प (Kalp)

ये वेदांग के अर्थ समझने में बहुत सहायता करते हैं। मंत्र के शुद्ध उच्चारण विद्वानों ने इन वेदांगों का महत्त्व बताते हए कहा है कि वेदों का मुख व्याकरण है, वेदों की आखें ज्योतिष, वेदों के कान शिक्षा, वेदों के कान निरुक्त हैं, वेदों के हाथ कल्प हैं और वेदों के पाव छंद है।

उपवेद (Upavedas)

प्रत्येक वेद (Vedas) का एक उपवेद है। इनकी संख्या भी चार ही है:-

  1. आयुर्वेद (Ayur-Veda)- यह ऋग्वेद का उपवेद है। इसमें वनस्पात शारत्र, आयु विज्ञान, प्राण विद्या और रसायन विद्या का ज्ञान है। प्राचीन काल में स्वेत्केतु (Svetketu) इसका महान् आचार्य था।
  2. धनुर्वेद (Dhanurveda)- यह यजर्वेद का उपवेद है। इसमें युद्ध कला के शस्त्रों के प्रयोग की विद्या लिखा हुइ है इस मंत्र में युद्ध के दांवपेच और शस्त्रों के नामों इत्यादि के बारे में ज्ञान मिलता है।
  3. गंधर्व वेद (Gandharav-Veda)- यह सामवेद का उपवेद है। इसमें संगीत सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें नृत्य, वादन और गायन का विशेष वर्णन मिलता है।
  4. शिल्पवेद (Silpa Veda)- यह अथर्ववेद का उपवेद है। इस ग्रन्थ में भवन निर्माण कला तथा अन्य मकान बनाने के नियमों पर प्रकाश डाला गया है।

छ: दर्शन (Six Schools of Indian Philosophy)

दर्शन वास्तव में आध्यात्मिक विज्ञान को कहा जाता है। प्राचीन काल में भारतीय विद्वानों के आध्यत्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए दर्शन शास्त्रों का अध्ययन बहुत आवश्यक होता था। इन छ: दर्शनों को वैदिक साहित्य में बहुत महत्त्व दिया जाता है।

क्योंकि इनमें मूल प्रश्न हैं जैसे माया, पुरुष, प्रकृति संसार की उत्पत्ति, आत्मा, ईश्वर है अथवा नहीं और इस प्रकार के अन्य प्रश्नों के उत्तर इन दर्शन शास्त्रों में दिये गये हैं । ये दर्शन निम्नलिखित छ: हैं:-

1. गौतम मुनि का न्याय शास्त्र (Nyaya Shastra of Gautma)

इस शास्त्र के रचयिता गौतम मनि थे। इस न्याय शास्त्र में तर्क विद्या (Science of debate) दी गई है। वैसे “न्याय” से अर्थ ही यह है कि वह ढंग जिसके द्वारा बुद्धि किसी परिणाम पर पहुचे।

इस शास्त्र में गौतम मनि ने शुद्ध ज्ञान और इसके स्वरूप पर तर्क द्वारा प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि ज्ञान द्वारा प्रभु की प्राप्ति हो सकती है और मक्ति भी मिल सकती है। उन्होंने इसमें न्याय के पांच अंग बताये है- उदाहरण, प्रतिज्ञा, उपनय, हेतु और निगमन के साथ ही इनका वर्णन दिया है।

2. पतंजलि का योग शास्त्र (Yogshastra of Patanjali)

पतंजलि ने अपने योग शास्त्र ईश्वर को माना है। उन्होंने लिखा है कि योग द्वारा ईश्वर की प्राप्ति और मक्ति हो सकती है। योग की चार किस्मे है:-

  1. लाय योग (Laya Yoga)
  2. हठ योग (Hath Yoga)
  3. राज योग (RajYoga)
  4. मन्त्र योग (Mantra Yoga)

पतंजलि का योग राज योग है। इसमें तप, योग, स आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का महत्त्व भी बताया गया है।

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3. कपिल का सांख्या शास्त्र (sankhya Shastra of Kapila)

इसकी रचना कपिल ऋषि ने की है। इस शास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धदांत है- एक आत्मा और दूसरी प्रकृति। इसके सम्बन्ध से ही संसार उत्पन्नहोता है। ये दोनों अनादी और अमर है।

प्रकृति को बनाने वाला कोई नहीं है, न ही यह किसी में से निकलती है। तीन गणों से इसका विकास होता है”-

  1. सत्व (Sattav)
  2. रजस (Rajas)
  3. तमस (Tamas)

इस शास्त्र के अनुसार ईश्वर कोई वस्तु नहीं है। केवल आत्मा और प्रकृति सब कुछ है।

4. कणाद का वैशेषिक शास्त्र (Vaisheshikashastraof Kanad)

इस शास्त्र को लिखने वाले कणाद ऋषि थे। इसके अनुसार दर्शन को अच्छी प्रकार और ठीक तरह से समझने के लिए पदार्थों को समझना बहुत आवश्यक है। हम जिन वस्तओं को देख सकते हैं जिनका नाम हो वही पदार्थ कहलाती हैं।

इस शास्त्र में कणाद ऋषि ने यह सिद्ध किया है कि ईश्वर पर काई नहीं है और संसार की उत्पत्ति अदृश्य अणु शक्ति से हई है। इसमें कर्म, गुण, द्रव्य, सामान्य, विशेष, समन्वय और प्रभाव इत्यादि पदार्थ के सात भागों का वर्णन आता है।

इस शास्त्र का अणु सिद्धान्त (Atomic theory) बहुत प्रसिद्ध है। किसी वस्तु का छोटे बड़े होना उसके अणुओं पर निर्भर है। यदि अधिक अणु होंगे तो पदार्थ बड़ा होगा, यदि कम अणु होंगे तो पदार्थ छोटे होते हैं।

5. जैमिनी का पूर्व मीमांसा शास्त्र (Purva Mimansa Shastra of zaimini)

पूर्व मीमांसा शास्त्र के रचयिता जैमिनी ऋषि हैं। जैमिनी ने वेदों (Vedas) को ईश्वर की कृति माना है और पूर्व मीमांसा के अनुसार मुक्ति प्राप्त करने के लिए वेदों में दिये गये योग और कर्म काण्ड का पालन करना अत्यावश्यक बताया है। इस शास्त्र के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा स्वर्ग में जाती है। आत्मा इन्द्रियों से भिन्न है।

यह शास्त्र कर्म प्रधान है। जैसा कोई कार्य करता है वैसा ही उसे फल मिलता है। इसके अनुसार मुक्ति आत्मा की वह अवस्था है जहां दुःख का नाम तक नहीं है और आत्मा परम आनन्द का अनुभव करती है। यह दर्शन वैदिक रीति रिवाजों पर विश्वास करता है और कर्म मार्ग पर बहुत बल देता है।

6. व्यास का उत्तर मीमांसा शास्त्र (Uttar Mimansa Shastra of Vyas)

इस शास्त्र में ईश्वर को सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान माना गया है। इसलिए केवल ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। इसमें ब्रह्म तत्त्व का पर्ण रूप मिलता है। उसके अनुसार यह प्रकृति उस ईश्वर का ही अंश मात्र है। सब कुछ ब्रह्म-ही-ब्रह्म है। इस अनुसार ईश्वर सर्व शक्तिमान और सर्व व्यापक है।

पुराण (Puran)

पराणों की संख्या तो 18 है और प्रत्येक के पांच भाग हैं परन्तु इनका पांचवां भाग ही ऐतिहासिक पक्ष से महत्त्व रखता है क्योंकि इस भाग में राजाओं और उनके वशा के बारे में ज्ञान मिलता है। सब पुराणों में से विष्ण, ब्रह्म पुराण, भागवत पुराण, वायु पुराण और मत्स्य पुराण प्रसिद्ध है। चाहे पुराणों में कई कमियां हैं परन्तु फिर भी इनका ऐतिहासिक महत्त्व बहुत है।

धर्म शास्त्र (Dharam Shastra)

धर्म शास्त्र हिंदु और बहुत प्राचीन कानून ग्रंथ हैं। इन्हें ‘स्मृति’ भी कहा जाता है। इनमें मनु स्मृति, विष्णु स्मृति और नारद स्मृति बहुत प्रसिद्ध हैं। इनमें आयों के कानून के बारे में बहुत ज्ञान प्राप्त होता है। मनु स्मृति अधिक महत्त्व रखती है। इसमें हिन्दुओं के कानूनों का वर्णन है। प्रत्येक जाति के कर्त्तव्य दिये गये हैं।

मनु ने जीवन को चार भागों में बांटा है- (i) ब्रह्मचय, (ii) गृहस्थ, (iii) वानप्रस्थ, (iv) सन्यास। प्रत्येक भाग में 25 वर्ष आते हैं, क्योंकि मनु ने जीवन को सौ वर्ष (100) का बनाया था। शष धर्म शास्त्रों में भी धर्म, जाति, समाज, व्यक्ति राजा आर प्रजा पर ऐतिहासिक पक्ष से सभी धर्म शास्त्रों का महत्त्व है।

दो महाकाव्य- रामायण और महाभारत (Two Epics-Ramayana and Mahabharat)

उत्तर वैदिक काल और महाकाव्य काल के लोगों के जीवन का ज्ञान हमे दो महाकाव्य “रामायण” और “महाभारत” से मिलता है।

(i) रामायण:- यह ऋषि बाल्मीकि का लिखा हआ माना जाता है। इसमें 24000 श्लोक और 48000 पक्तिया है। इसके काल के बारे में निश्चित रूप से कछ नहीं कहा जा सकता। हिन्दू विद्वान् इसे ईसा से 3000 वर्ष पूर्व लिखा हुआ बताते हैं और डा० मैक्डूनल ने इसका समय ईसा से पांच सौ वर्ष पहले बताया है।

(ii) महाभारत:- साधारणतः महाभारत का रचयिता व्यास ऋषि को माना जाता है। परन्तु इसकी शैला और भाषा में अन्तर होने के कारण यह न तो एक व्यक्ति का लिखा हुआ प्रतीत होता है न ही एक काल की रचना लगती है। इसके 18 अध्याय है और 1,00,000 से अधिक श्लोक हैं।

यह विश्व भर में सबसे लम्बी एक मात्र कविता मानी जाती है। महाभारत के काल के बारे में विद्वानों के भिन्न-भिन्न विचार हैं। कुछ विद्वान् इसे ईसा से तीन हजार वर्ष पहले लिखा हुआ मानते है।

कइयों ने इसे 1500 ई० पूर्व लिखा बताया है और डा० आर० एस० त्रिपाठी के अनुसार महाकाव्य का आरम्भ और समाप्ति 500 ई० पू० से 400 ई० पू० काल के समय हुई थी।

समस्त रूप में रामायण और महाभारत का समय उत्तर वैदिक काल का अंतिम और बुद्ध काल से पहले का समय माना जाता हैं।

उम्मीद करता हु कि यह लेख आपको अच्छा लगा होगा। फिर भी यदि आपको कोई परेशानी आ रही है, तो आप मुझसे contact कर सकते है।

धन्यवाद्।

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